इंदौर.
शहर में प्रतिदिन 200 से अधिक लोग श्वान के हमले का शिकार हो रहे हैं, लेकिन टीकाकरण के लिए सिर्फ एक ही शासकीय अस्पताल में सुविधा मिल रही है। नियमानुसार सभी शासकीय अस्पतालों में इसकी सुविधा लोगों को मिलना चाहिए। लोगों को टीका लगवाने के लिए हुकमचंद पाली क्लीनिक ही आना पड़ता है। अन्य अस्पतालों को लेकर जिम्मेदार दावे करते हैं कि यहां भी टीकाकरण हो रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है। यहां आने वाले लोगों को भी हुकमचंद पाली क्लीनिक ही भेजा जा रहा है। ऐसे में सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को आती है, जिनका घर अस्पताल से काफी दूर है, यानी शहर की 35 लाख जनसंख्या के लिए एंटी रैबीज टीके लगाने के लिए सिर्फ एक ही अस्पताल है।
हर माह चार हजार से ज्यादा मामले
प्रतिदिन सुबह अस्पताल खुलने से पहले ही मरीजों की कतार लगना शुरू हो जाती है। हर महीने औसत यहां चार हजार से अधिक मामले आते हैं, यानी प्रतिदिन करीब 150 लोग यहां आते हैं। इनमें से 95 प्रतिशत से ज्यादा श्वान काटने के मामले होते हैं। सरकार कई बार घोषणा कर चुकी है कि एंटी रैबीज टीके हर सरकारी अस्पताल में उपलब्ध करवाए जाएंगे, लेकिन यह घोषणा सिर्फ कागजों तक ही सीमित नजर आती है।
इन अस्पतालों में भी होनी चाहिए व्यवस्था
जिला अस्पताल, एमवाय अस्पताल, शासकीय अस्पताल बाणगंगा आदि स्थानों पर भी एंटी रैबीज टीके लगाने की व्यवस्था होना चाहिए, ताकि लोगों को निकटतम ही यह सुविधा आसानी से मिल सके। यहां सुविधा न मिलने का एक कारण यह भी सामने आ रहा है कि टीके के वायल से एक बार में चार लोगों का टीकाकरण किया जाता है। यदि इसे एक बार खोल लिया जाता है तो तीन घंटे के अंदर की इसका उपयोग करना जरूरी होता है। इसके बाद यह किसी काम का नहीं होता है। इन अस्पतालों में कम संख्या में लोग टीके लगवाने के लिए आते हैं। इसके लिए यहां आने वाले मरीजों को हुकमचंद पाली क्लीनिक भेजा जाता है, लेकिन यह नियमों का उल्लंघन है।
घाव को तुरंत साबुन से धोएं
हुकमचंद पाली क्लीनिक के प्रभारी डा. आशुतोष शर्मा का कहना है कि किसी पशु (श्वान या कोई अन्य) के काटने पर घाव को तुरंत साबुन से अच्छी तरह से धोएं और डाक्टर को दिखाएं। हमारे यहां हर माह करीब चार हजार लोग टीका लगवाने के लिए आते हैं।
निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर लोग
जिन लोगों को हुकमचंद पाली क्लीनिक दूर पड़ता है, वे विकल्प के तौर पर निजी अस्पताल में एंटी रैबीज टीके लगाने के लिए जाते हैं। यहां उन्हें एक हजार रुपये तक चुकाने पड़ते हैं। लोगों ने बताया कि हमारे आसपास ही टीका लगाने की सुविधा मिलनी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग हमेशा इसके दावे करता है कि सभी शासकीय अस्पतालों में यह सुविधा मिलती है, लेकिन वहां जाने पर हमें लाल अस्पताल जाने के लिए कहां जाता है। कई बार समय न होने के कारण हम नजदीकी निजी अस्पताल में ही टीके लगवा लेते हैं।
कई वर्षों बाद भी नजर आ सकते हैं लक्षण
रैबीज के लक्षण श्वान के काटने के कई वर्षों बाद भी नजर आ सकते हैं। यह वायरस मनुष्य के तंत्रिका तंत्र में पहुंचकर दिमाग में सूजन पैदा करता है। इससे व्यक्ति कोमा में चला जाता है या उसकी मौत हो जाती है। वायरस त्वचा या मांसपेशियों के संपर्क में आने के बाद रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। वायरस के मस्तिष्क में पहुंचने के बाद बीमारी के लक्षण नजर आने लगते हैं। रैबीज के लक्षणों में पानी से डरना, अनिद्रा मुख्य है। इसके अलावा बुखार, सिरदर्द, घबराहट, बेचैनी, भ्रम की स्थिति, बहुत अधिक लार निकलना आदि भी है।